Friday, 12 June 2020

कहानी - निस्वार्थ भाव से किया गया एक कार्य

एक  समय की बात है , एक मछलियों का ब्यापारी था , वह काफी धनाढ्य था।  नदी के ही कुछ दूरी पर उसका आलिशान मकान था।  उसके पास कुछ नावें थी , कुछ बिलकुल  ठीक ठाक  थी कुछ पुरानी हो चुकी थी  जिन्हे  दुरुस्त करने की जरूरत थी।  अतः उसने एक  पेंटर को बुला कर  सभी नावों को पेंट करने के लिए कहा। पेंटर ने पेंट करने के पांच सौ  रूपये मांगे। ब्यापारी उसे पूरे पैसे दे कर   और काम समझा कर ब्यापारी अपने धंधे पर चला गया।  

और जब वह ब्यापारी शाम को घर  लौटा तो  घर के सामने भीड़ देख का घबरा गया। और उसे पता लगा की उसके दोनों बेटे काफी देर  से गायब थे  बहुत खोजने पर नहीं मिल रहे थे।  बच्चों की माँ का भी रो रो कर काफी ख़राब  हालत  हो गई थी।  तभी उसे पेंटर का ख्याल आया जिसे उसने नावों को पेंट करने का काम सौंपा था। पता लगा की वह दोपहर को  ही वह काम  पूरा कर के जा  चुका था।  पर उसने देखा की जितनी नाव पेंट करने के लिए कहा था उसमे से एक नाव कम  है।  
ब्यापारी समझ गया की उसके दोनों  बेटे नाव ले कर  नदी में गए है।  अतः वह तुरंत  कुछ नाविकों और गोताखोरों को ले कर  दूसरी नाव पर सवार हो कर  बच्चों को ढूढ़ने के लिए निकल पड़ा।    अभी वह कुछ दूर ही गया था तभी उसे दूर से नाव आती दिखाई दी , वह उसी की ही  नाव थी , उसमे बैठे उसके दोनों बच्चे सुरक्षित थे।  ब्यापारी ने राहत की साँस ली और तेजी से अपनी नाव  को उनकी तरफ ले कर गया।  पिता को अपनी तरफ आता देख कर बचे डर गए , क्योंकि उन्हें  बिना पूछे नाव ले जाने की अनुमति नहीं थी।  बच्चे डरते डरते सहमे हुए पिता के करीब आये , पर पिता ने उन्हें डांटने की बजाय उन्हें गले से लगा लिया।  नदी के किनारे माँ और कई लोग बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे।  बच्चे नाव से उतरते ही माँ से जा कर लिपट गए।  सभी के जाने के बाद ब्यापारी बच्चों की नाव के करीब आया उसे गौर से देखने लगा।  देखने के बाद उसने तुरंत एक आदमी को उस पेंटर को बुलाने के लिए भेजा।  पेंटर सहम गया , उसे लगा की कुछ गलती हो गई है अतः उसे दंड देने की लिए बुलाया गया है. वह पेंटर जब वहां पहुँचा तो  ब्यापारी उससे प्रश्न किया की 
तुमने आज क्या काम किया ?
नाविक - जी नाव रंगने का। 
ब्यापारी - तुम्हारी मजदूरी कितनी हुई ?
नाविक - जी पांच सौ रुपये।  
ब्यापारी कुर्सी से उठ कर पेंटर को गले लगते हुए कहा की पांच सौ रूपये  नहीं , बल्कि काफी ज्यादा , यह लो पचास हजार रुपये। ऐसा कहते हुए उसने नोटों की गड्डी   उसके हाथ पर रख दी।  नाविक यह समझ नहीं पा रहा थी की उसे इतने पैसे क्यों दे रहे हैं. और भी लोग आश्चर्य से देख रहे थे. 
तभी ब्यापारी ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा की - आप सभी सोच रहे होंगे की पांच सौ रूपये के काम के पचास हजार क्यों दे रहा हूँ. 
ऐसा इस लिए की इस पेंटर की वजह से ही मेरे दोनों बेटों की जान बच गई .... .दरअसल जिस नाव को ले कर बच्चे नदी में गए थे उस नाव में एक छोटा सा छेद था।  और इस पेंटर ने बिना किसी के पूछे उसको भर दिया , जो की इनका काम नहीं था और न ही इस काम के इन्होने पैसे मांगे , और इन्होने निस्वार्थ भाव से जो काम किया  उसी से मेरे दोनों बच्चे सुरक्षित बच सके।  अगर इन्होने उस काम को न किया होता तो नाव कुछ दूर जा कर डूब सकती थी।  अतः इनके निस्वार्थ भाव से किये गए काम से मैं इनका  आजीवन ऋणी हो गया हूँ। यह छोटी सी रकम इनकी अच्छाई के सामने एक मामूली सा तोहफा है।  ब्यापारी की यह बात सुन कर वहां उपस्थित सभी लोग पेंटर के सम्मान में तालियां बजाई और सभी ने उसका धन्यवाद किया। 

दोस्तों ,  केवल बड़े आयोजन या बड़े स्तर के कार्य से ही महान बना जा सकता है ऐसा नहीं है  , बल्कि दैनिक जीवन में भी कई छोटी छोटी चीजें होती है जो  महानता तक ले जाती हैं. 
अतः , इस कहानी से सीख लेनी चाहिए की हमें भी नेक काम के छोटे से छोटे अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। और अपने अहम् को त्याग कर इस दुनिया को संवारने का प्रयास करना चाहिए। 
धन्यवाद ! 

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